अपनी बात
- श्रेष्ठ पुस्तकों का आप बहुत अध्ययन करते हैं,बेशक यह महत्वपूर्ण है ।लेकिन इससे भी ज्यादा श्रेस्कर यह है की आप कितना लिखते हैं ।लिखने से यह पता चलता है की आपने क्या--क्या और कितना अचूक संग्रहण किया ।
- थोड़ी भावनाएं,थोड़ी दिल की रजामंदी और जिस्मानी तासीर वाली मुहब्बत अक्सर कई शाख पर बैठती है लेकिन रूहानी मुहब्बत एक जगह कायम,काबिज और कुलाचें भरती है ।
- भीड़ के हिस्से की कभी सलीके से चर्चा नहीं होती है ।चर्चा उनकी होती है जो भीड़ में शामिल रहकर भी,भीड़ से हटकर दिखते हैं ।हमेशा औरों के काम आने की जुगत तलाशनी चाहिए ।किसी की अगर आपने मदद की,तो समझियेगा, ईश्वर ने आपको पुण्य का अवसर दिया है ।किसी की मदद कर के इतराना नहीं चाहिए,बल्कि ईश्वर बार--बार यह अवसर दें,इसकी आरजू करनी चाहिए।
- अपने और पराये रिश्ते की समझ आसान नहीं है ।अमूमन सामाजिक संस्कारों से निर्मित रिश्तों को अपने का दर्जा प्राप्त है ।लेकिन जीवन के दौर में कुछ बेनाम रिश्ते मिलते हैं,जो अपने के दायरे से व्यापक और साबूत होते हैं ।सच यह है की ऐसे बेनाम रिश्ते हमेशा ना केवल हासिये पर चले जाते हैं बल्कि उनकी खिदमत आरोपों और दागों से की जाती है ।
- सच्चे प्यार में फकत महबूब दिखता है और महबूब में ही सारी दुनिया दिखती है ।बंदिशें और वर्जनाएं दम तोड़ देती हैं और सारी रिवायतें धराशायी हो जाती हैं ।ना उम्र का रोड़ा और ना नफा--नुकसान की सिलवटें----बस मुहब्बत की तासीर का बुलंद गुमां होता है ।
- जब कोई किसी के दिल में बस जाता है,तो उसकी हर बुराई भी उसे अच्छी ही लगती है लेकिन जब कोई किसी के दिल के बाहर ही फिसल जाता है,तो उसकी मुश्ते और थोक की अच्छाई भी सिफर से कमतर नजर आती है ।
- आप अपने को इतना योग्य जरूर बनाएं,जिससे आप खुद को सुरक्षित रखते हुए अपने से जुड़े लोगों को भी सुरक्षित रख सकें ।धन संचय जरुरी है लेकिन संचय पथ सही होना चाहिए ।अपनी समृद्धि के लिए दूसरे के नुकसान की पटकथा कतई ना लिखें ।
- स्वार्थी,मौकापरस्त,मतलबी और गलीज सोचों से तर लोगों की राह अमूमन बड़ी आसान होती है ।लेकिन सच के रहबर का खुलकर सांस लेना भी मुश्किल होता है ।सच दर्द सहता है ।सीलन में रिसता रहता है ।तकलीफों का पारावार नहीं लेकिन साबूत जिन्दगी सच के साथ ही कुलाचें भरती है ।
- रिश्तों की भीड़ में फर्ज कुलाचें भरता है ।वहाँ जीवन में कुछ करना और करवाना एक सहज प्रक्रिया है ।लेकिन बगैर किसी रिश्ते के किसी के लिए कुछ करना आपका कोरा सद्कर्म है ।ऐसे कर्मों से आपके वजूद को सुर्खाबी पर लगते हैं ।
- तारीफ़ से वजूद की पैमाईश कतई सम्भव नहीं है ।अपनी जरूरत और हालात के मुताबिक इंसान किसी की तारीफ़ करता है । भीतर की संग्रहित पूँजी से ही असल में किसी को समझा जा सकता है और फिर उसकी तारीफ़ की जा सकती है ।