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Tuesday, 2 August 2016

  • तारीफ़ से वजूद की पैमाईश कतई सम्भव नहीं है ।अपनी जरूरत और हालात के मुताबिक इंसान किसी की तारीफ़ करता है । भीतर की संग्रहित पूँजी से ही असल में किसी को समझा जा सकता है और फिर उसकी तारीफ़ की जा सकती है ।

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