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Tuesday, 2 August 2016

आखिर कुदरत का इतना गुस्सा क्यों ?

क्सक्लूसिव 
ठनका गिरा,आसमानी बिजली गिरी,वज्रपात हुआ
कई लोग मरे,कई झुलसे
अचानक कुदरत के कहर में हुआ है इजाफा
आखिर कुदरत का इतना गुस्सा क्यों ?
क्यों नहीं हो रहा इसपर वैज्ञानिक अनुसंधान  

मुकेश कुमार सिंह की टूक-----
हमने सामाजिक सरोकार से जुड़े हर मसले पर ससमय सिद्दत से मौजूं सवाल उठाने की कोशिश की है ।आज का विषय ना केवल इंसानी और जानवरों की जिंदगी से मुतल्लिक है बल्कि पर्यावरणविद्,मौसम वैज्ञानिक,भूगर्भ शास्त्री और इससे जुड़े तमाम जानकार और विशेषज्ञों के लिए एक बड़ी चुनौती भी है ।हमने विगत सात वर्षों का गहन अध्ययन किया है ।हमने अपने अध्ययन और संग्रहित ज्ञान में यह पाया है की सात वर्ष पूर्व तक खासकर उत्तर बिहार के कोसी--सीमांचल और मिथिलांचल में बाढ़ के समय पानी में डूबने से और आगजनी में झुलसकर अधिक लोगों की मौत होती थी ।लेकिन अब इनदोनों वजहों को बहुत पीछे छोड़ दिया है ठनका,यानि आसमानी बिजली,यानि वज्रपात ने । पिछले सात वर्षों के आंकड़े को खंगालें तो वज्रपात से उत्तर बिहार में सैंकड़ों लोगों की जान गयी है ।वैसे पुरे बिहार में वज्रपात की घटना घटी है जिसमें कई मौतें हुयी हैं ।
इस आलेख का हमारा मकसद है की वज्रपात से थोक में होने वाली मौत को लेकर शासन और प्रशासन कोई भी गंभीर नहीं है ।आखिर वज्रपात की घटनाएं इतनी तेजी से क्यों बढ़ रही हैं ? आखिर आसमान को इतना गुस्सा क्यों आ रहा है ? आखिर कुदरत इंसानी और मवेशियों की जिंदगी को लीलने पर क्यों आमदा है ?क्या कोई मौसम की वजह है ?क्या कोई प्राकृतिक वजह है ?क्या कोई पर्यावरण की वजह है ?आखिर क्यों वज्रपात की घटनाएं इतनी तेजी से घटित हो रही हैं ।केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को साझा प्रयास करना चाहिए और देश स्तर पर इस विषय पर सेमीनार और कार्यशाला का आयोजन होना चाहिए । पर्यावरणविद्,मौसम वैज्ञानिक,भूगर्भ शास्त्री और इससे जुड़े तमाम जानकार और विशेषज्ञों को इकट्ठा होकर इस गंभीर मसले पर गहन चिंतन,बहस और सघन विमर्श करने की जरुरत है ।आखिर कबतक इंसानों के साथ--साथ जानवरों की असमय मौत होती रहे और हर तरफ ख़ामोशी चस्पां रहे ।अब जरुरत है बिना समय गंवाए वज्रपात की वजहों को तलाशने की कोशिश करी जाए और उससे कैसे निपटें,इसकी जुगत की जाए ।हम इस आलेख के जरिये देश के तमाम राजनीतिक दलों के सूरमाओं के साथ--साथ देश के तमाम जिम्मेवार नागरिकों को समवेत आवाज लगा रहे हैं की वे वज्रपात से कैसे निपटें,इसके लिए समाधान तलाशने में अपनी भूमिका दर्ज कराएं ।

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