गुर्गों से मिल रही धमकी
जान की सलामती चाहते हो,तो खामोश रहो
कलम को बारूद से चुप करने की कोशिश
हम जबतक रहेंग ज़िंदा,सच को करेंगे बेपर्दा
मौत से नहीं डरता,गलीज दुनिया वालों की फितरत पर आती है शर्म
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक----
तीन अगस्त को बिहार के सहरसा सदर थाने में थानेदार संजय सिंह ने फ़िल्मी स्टाईल में जमकर जीवंत अभिनय किया ।मारपीट की घटना में गंभीर रूप से जख्मी हुए सुशील भगत नाम के पीड़ित और उनके परिजनों के साथ मिस्टर थानेदार ने ना केवल थोक में गाली--गलौज की बल्कि पीड़ित सुशील भगत को धक्के मारकर थाने से बाहर भी कर दिया ।हमने इस घटना को आम लोगों के अधिकार के साथ हो रहे खिलवाड़ के तौर पर लिया और इस घटना की पुनरावृति फिर किसी थाने में ना हो,इसके लिए सोसल मीडिया पर मुहीम छेड़ दी ।हमने अपने आलेख के माध्यम से इस सनकी थानेदार पर बड़े अधिकारी ससमय न्याय सम्मत कार्रवाई करें,इसकी पुरजोर कोशिश की ।इस थानेदार पर कार्रवाई हो इसको लेकर सोसल मीडिया पर छिड़े जंग में कई राजनीतिक दल भी शामिल हो गए ।सत्ताधारी राजद ने भी थानेदार को तुरंत हटाओ के लिए मुहीम छेड़ दी ।अब मामला मीडिया की पहल के साथ--साथ सियासी रंग में भी रंग चुका है ।ऐसे में थानेदार को ना उगलते बन रहा है और ना ही निगलते बन रहा है ।हद तो इस बात की भी है की हमारे मीडिया के कुछ बंधू श्रीमान थानेदार के विशेष सलाहकार भी हैं ।बाहर की तमाम हलचल को ऐसे पत्रकार बंधू खबरीलाल की तरह समेटकर थानेदार के पास परोसते हैं ।खैर,इन बातों से हमें कोई लेना--देना नहीं ।आज पत्रकारिता में ऐसे लोग आ रहे हैं जिन्हें अधिकारियों से परिचय और धन उगाही का शौक है ।आमजन के हित और जन सरोकार के मुद्दों से उन्हें कोई लेना--देना नहीं है । हमें याद है की एक समय जब घर का बेटा बिगड़ैल की श्रेणी में आ जाता था,तो उसके पिता कहते थे""नालायक तू कुछ भी नहीं कर सकता ।कम से कम लॉ की डिग्री तो ले ले ""।बाद में कचहरी में दो पैसे कमा लेगा ।अब उस श्रेणी से भी जो नीचे उतरे हुए हैं,जिन्हें कहीं कोई रोजगार नहीं मिला,वे पत्रकारिता की तरफ आ गए हैं ।मैनेजमेंट को वसूली मास्टर की जरूरत होती है ।उन्हें ठोके--बजाये पत्रकार की जरुरत ना के बराबर होती है ।
विषयांतर ना हो,इसलिए वापिस विषय पर आ रहा हूँ ।मुझे ""जान से मारने की धमकी""मिल रही है । बीती शाम मुझे कई अपरिचित चेहरे मिले जिन्होनें मुझसे कहा की अच्छा लिखने का यह मतलब नहीं की आप कुछ भी लिखें ।अच्छा लिखना कभी--कभी नुकसान भी करता है ।सदर थानेदार भले आदमी हैं ।आप उनके पीछे क्यों पड़े हैं ।अगर कुछ चाहिए तो बोलिये....साहेब दानवीर है,वे आपको खुश कर देंगे ।लेकिन आप अपना रवैया बदलिये । मैं अकेला था और वे संख्यां में थे ।मैंने उन्हें इतना जरूर कह दिया की मौत एक दिन आनी ही है और मैं वर्षों से मौत का इन्तजार कर रहा हूँ ।मैं अपनी जिद की जिंदगी जीता रहा हूँ और रास्ते भी खुद से बनाता और उसपर चलता भी हूँ ।मुझे किसी बात का कोई भी डर नहीं है ।वैसे हम अपने पाठकों को बताते चलें की अपने पत्रकारिता जीवन में जब में यूपी में था,तो उस समय भी पत्रकारिता में नयी ईबारत लिखता था ।वह पत्रकारिता का ऐसा दौर था,जब जिसकी कलम में धार थी,उन्हें देश का सच्चा नायक समझा जाता था ।लेकिन अब नए जमाने में नयी सोच के साथ पत्रकारिता ने अपना स्वरूप ही बदल लिया है ।सच कहता हूँ जब से बिहार वापिस आया हूँ,एक अजीब सी घुटन महसूसता रहा हूँ ।मुझे जो एक तरह से खुली धमकी मिली है,इसकी जानकारी मैं राज्यपाल,सूबे के मुखिया नीतीश कुमार,राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद,डीजीपी सहित राज्य मुख्यालय के अन्य अधिकारी,देश की खुफिया एजेंसी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह को देने जा रहा हूँ ।
इसी कड़ी में बताना बेहद जरुरी है की वर्ष 2009 में तत्कालीन सहरसा डीएम आर लक्ष्मणन,2011 में डीएम देवराज देव और 2014 में डीएम शशि भूषण कुमार ने मेरे खिलाफ जमकर षड्यंत्र किया लेकिन मेरे ईमान की ताकत के सामने उनकी एक ना चली ।यही नहीं कोसी रेंज के तत्कालीन डीआईजी परेश सक्सेना ने कुछ पत्रकार बंधुओं के सहयोग से 16 पन्नों में मेरे खिलाफ माननीय सहरसा न्यायालय में एक वाद भी दायर कर दिया ।लेकिन कहते हैं की सच परेशान होता है लेकिन कभी पराजित नहीं होता है ।परेश सक्सेना को उस मामले में मुंहकी खानी पड़ी ।
अब मेरा खुला चैलेंज भ्रष्टाचारियों के खिलाफ की उन्हें जो भी षड्यंत्र करना है,वे कर लें लेकिन मैं सच का सिपहसालार हूँ और ताउम्र सच मुझमें कुलाचें भरेगा ।मैं मरकर भी अपने रास्ते नहीं बदलूंगा ।बारूद के धुएँ को हम इल्म की ताकत से खामोश कर देंगे ।जिन्हें जो करना हैं करें ।हम तो बस अपनी मर्जी की ही करेंगे ।
जान की सलामती चाहते हो,तो खामोश रहो
कलम को बारूद से चुप करने की कोशिश
हम जबतक रहेंग ज़िंदा,सच को करेंगे बेपर्दा
मौत से नहीं डरता,गलीज दुनिया वालों की फितरत पर आती है शर्म
मुकेश कुमार सिंह की दो टूक----
तीन अगस्त को बिहार के सहरसा सदर थाने में थानेदार संजय सिंह ने फ़िल्मी स्टाईल में जमकर जीवंत अभिनय किया ।मारपीट की घटना में गंभीर रूप से जख्मी हुए सुशील भगत नाम के पीड़ित और उनके परिजनों के साथ मिस्टर थानेदार ने ना केवल थोक में गाली--गलौज की बल्कि पीड़ित सुशील भगत को धक्के मारकर थाने से बाहर भी कर दिया ।हमने इस घटना को आम लोगों के अधिकार के साथ हो रहे खिलवाड़ के तौर पर लिया और इस घटना की पुनरावृति फिर किसी थाने में ना हो,इसके लिए सोसल मीडिया पर मुहीम छेड़ दी ।हमने अपने आलेख के माध्यम से इस सनकी थानेदार पर बड़े अधिकारी ससमय न्याय सम्मत कार्रवाई करें,इसकी पुरजोर कोशिश की ।इस थानेदार पर कार्रवाई हो इसको लेकर सोसल मीडिया पर छिड़े जंग में कई राजनीतिक दल भी शामिल हो गए ।सत्ताधारी राजद ने भी थानेदार को तुरंत हटाओ के लिए मुहीम छेड़ दी ।अब मामला मीडिया की पहल के साथ--साथ सियासी रंग में भी रंग चुका है ।ऐसे में थानेदार को ना उगलते बन रहा है और ना ही निगलते बन रहा है ।हद तो इस बात की भी है की हमारे मीडिया के कुछ बंधू श्रीमान थानेदार के विशेष सलाहकार भी हैं ।बाहर की तमाम हलचल को ऐसे पत्रकार बंधू खबरीलाल की तरह समेटकर थानेदार के पास परोसते हैं ।खैर,इन बातों से हमें कोई लेना--देना नहीं ।आज पत्रकारिता में ऐसे लोग आ रहे हैं जिन्हें अधिकारियों से परिचय और धन उगाही का शौक है ।आमजन के हित और जन सरोकार के मुद्दों से उन्हें कोई लेना--देना नहीं है । हमें याद है की एक समय जब घर का बेटा बिगड़ैल की श्रेणी में आ जाता था,तो उसके पिता कहते थे""नालायक तू कुछ भी नहीं कर सकता ।कम से कम लॉ की डिग्री तो ले ले ""।बाद में कचहरी में दो पैसे कमा लेगा ।अब उस श्रेणी से भी जो नीचे उतरे हुए हैं,जिन्हें कहीं कोई रोजगार नहीं मिला,वे पत्रकारिता की तरफ आ गए हैं ।मैनेजमेंट को वसूली मास्टर की जरूरत होती है ।उन्हें ठोके--बजाये पत्रकार की जरुरत ना के बराबर होती है ।
विषयांतर ना हो,इसलिए वापिस विषय पर आ रहा हूँ ।मुझे ""जान से मारने की धमकी""मिल रही है । बीती शाम मुझे कई अपरिचित चेहरे मिले जिन्होनें मुझसे कहा की अच्छा लिखने का यह मतलब नहीं की आप कुछ भी लिखें ।अच्छा लिखना कभी--कभी नुकसान भी करता है ।सदर थानेदार भले आदमी हैं ।आप उनके पीछे क्यों पड़े हैं ।अगर कुछ चाहिए तो बोलिये....साहेब दानवीर है,वे आपको खुश कर देंगे ।लेकिन आप अपना रवैया बदलिये । मैं अकेला था और वे संख्यां में थे ।मैंने उन्हें इतना जरूर कह दिया की मौत एक दिन आनी ही है और मैं वर्षों से मौत का इन्तजार कर रहा हूँ ।मैं अपनी जिद की जिंदगी जीता रहा हूँ और रास्ते भी खुद से बनाता और उसपर चलता भी हूँ ।मुझे किसी बात का कोई भी डर नहीं है ।वैसे हम अपने पाठकों को बताते चलें की अपने पत्रकारिता जीवन में जब में यूपी में था,तो उस समय भी पत्रकारिता में नयी ईबारत लिखता था ।वह पत्रकारिता का ऐसा दौर था,जब जिसकी कलम में धार थी,उन्हें देश का सच्चा नायक समझा जाता था ।लेकिन अब नए जमाने में नयी सोच के साथ पत्रकारिता ने अपना स्वरूप ही बदल लिया है ।सच कहता हूँ जब से बिहार वापिस आया हूँ,एक अजीब सी घुटन महसूसता रहा हूँ ।मुझे जो एक तरह से खुली धमकी मिली है,इसकी जानकारी मैं राज्यपाल,सूबे के मुखिया नीतीश कुमार,राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद,डीजीपी सहित राज्य मुख्यालय के अन्य अधिकारी,देश की खुफिया एजेंसी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह को देने जा रहा हूँ ।
इसी कड़ी में बताना बेहद जरुरी है की वर्ष 2009 में तत्कालीन सहरसा डीएम आर लक्ष्मणन,2011 में डीएम देवराज देव और 2014 में डीएम शशि भूषण कुमार ने मेरे खिलाफ जमकर षड्यंत्र किया लेकिन मेरे ईमान की ताकत के सामने उनकी एक ना चली ।यही नहीं कोसी रेंज के तत्कालीन डीआईजी परेश सक्सेना ने कुछ पत्रकार बंधुओं के सहयोग से 16 पन्नों में मेरे खिलाफ माननीय सहरसा न्यायालय में एक वाद भी दायर कर दिया ।लेकिन कहते हैं की सच परेशान होता है लेकिन कभी पराजित नहीं होता है ।परेश सक्सेना को उस मामले में मुंहकी खानी पड़ी ।
अब मेरा खुला चैलेंज भ्रष्टाचारियों के खिलाफ की उन्हें जो भी षड्यंत्र करना है,वे कर लें लेकिन मैं सच का सिपहसालार हूँ और ताउम्र सच मुझमें कुलाचें भरेगा ।मैं मरकर भी अपने रास्ते नहीं बदलूंगा ।बारूद के धुएँ को हम इल्म की ताकत से खामोश कर देंगे ।जिन्हें जो करना हैं करें ।हम तो बस अपनी मर्जी की ही करेंगे ।
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