सरकार के काले कानून को,हाईकोर्ट की दुलत्ती
हाईकोर्ट ने शराब बंदी कानून में गिनाये कई नुख्स और इस शराबबंदी को बताया असंवैधानिक
नीतीश कुमार को करारा झटका
वैसे सरकार में बने कुछ मंत्री और नेताओं ने जरूर ली होगी चैन की सांस
वैसे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार जायेगी सुप्रीम कोर्ट
मुकेश कुमार सिंह का खास विशेषण-----
नीतीश कुमार का शराबबंदी निसंदेह एक कालजयी और महान फैसला था ।लेकिन एक तरफ काल,परिस्थिति और जनमानस को बिना भांपे और बिना होमवर्क के हंसी--खेल में यह फैसला ले लिया गया ।
शराब बंदी को हाईकोर्ट से क्यों लगा झटका ?
1 अप्रैल 2016 का पहले खूबसूरत लेकिन अब काला दिन जब सरकार ने पूर्ण शराबबंदी का फैसला लिया ।उस दिन आपने कुछ जगहों पर पटाखे छूटते और रंग--अबीर और गुलाल उड़ते जरूर देखे होंगे लेकिन उससे ज्यादा हमने आमजन के बीच मातम देखा था ।आपने शराबबंदी के नाम पर ऐसे शख्त कानून बना डाले की आम से लेकर खास सभी हलकान और परेशान थे ।लोग नीतीश कुमार को तानाशाह तक कहने लगे थे ।शाम ढ़लते ही बाजारों में कर्फ्यू सा माहौल हो जाता था ।कई तरह के व्यवसाय बंद होने लगे थे ।
मैं खुद शराब नहीं पीता और हमारे घर के कोई भी सदस्य शराब नहीं पीते ।हमसभी इस फैसले को एक महान फैसला मानते थे ।लेकिन जैसे--जैसे इसको लेकर कानून बने और दोनों सदनों में उसे मूर्त रूप देने की स्वीकृति मिली,यह एक बड़ी शर्मनाक भूल थी ।
नीतीश बाबू अपने भाजपा के साथ चलाये दस साल की अपनी सरकार में पंचायत स्तर पर देशी और विदेशी शराब की दुकानें खोल डालीं ।अपने बयानों में आप कहते थे की इसी शराब के पैसे से लड़कियों को स्कूल में साईकिल दी जा रही है । लंबा वक्त लिया आपने नीतीश बाबू लोगों को शराबी बनाने में ।जो शराब के बारे में ककहरा नहीं जानता था,वह सुबह उठते ही दारु माँगता था । नीतीश बाबू,मैं इसी बिहार का रहने वाला हूँ और अपने बुते देश के कई हिस्सों में जाकर अपनी सेवा दी है लेकिन ऐसी नादानी करने वाला मुख्यमंत्री मैंने अपने जीवन में नहीं देखा ।
पूर्ण शराबबंदी से पहले आपको एक साल तक शराब की दुकानों की संख्यां कम करनी चाहिए थी ।शराबियों के बीच विभिन्य माध्यमों से जागरण की बातें होनी चाहिए थी ।पीकर बलवा करने पर जुर्माना,या हल्की सजा करानी चाहिए थी ।फिर जाकर लोग कुछ ना कुछ अपने में सुधार जरूर लाते ।हम अपना अनुभव बताते हैं की महज दस--बारह साल पहले कोई शरीफ दिखने वाला शख्स अपने से शराब की दूकान पर नहीं जाते थे ।अगर वे रिक्शे पर हैं तो रिक्शावाला,अगर मोटर गाड़ी पर हैं,तो ड्राईवर शराब दूकान से शराब लाता था ।लेकिन बाद में स्थिति ऐसी बदली की स्कूली बच्चे भी शराब की दूकान से शराब और बियर धड़ल्ले से खरीदते नजर आने लगे ।
सरकार ने एसी कमरे में राजनीतिक फायदे के लिए यह फैसला लिया,जो उसके गले की हड्डी बन गयी ।हाईकोर्ट में जो याचिका दायर की गयी थी,उसपर सरकार की मंसा को समेटे कई बिंदुओं को रखा गया था ।हाईकोर्ट में माननीय पढ़े--लिखे जज बैठते हैं और बिहार के माहौल से वे भी वाकिफ है ।हम ताल ठोंक कर कहते हैं की बेहतर तरीके से शराबबंदी उचित समय पर लागू होती तो हाईकोर्ट भी उसपर अपनी मुहर लगाती ।जैसे सिस्टम में कई छेद उसी तरह इस शराबबंदी में भी बहुतों छेद थे ।
हाईकोर्ट ने शराबबंदी पर से प्रतिबंध हटा दिया है ।लेकिन भागते चोर की लंगोटी भली ।सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जरूर जायेगी ।हमारी समझ से वहाँ भी सरकार सुप्रीम कोर्ट की झिड़की सुनेगी और सरकार को वहाँ भी मुंहकी खानी होगी ।
इधर हाईकोर्ट के फैसले से शराबियों को लग रहा है की गोया जीवनदान मिल गया है और वे एक दूसरे को पानी पिला--पिलाकर रंग--अबीर खेल रहे हैं ।पटाखे भी ये खूब छोड़ रहे हैं ।
शराबबंदी एक बेहद अनमोल फैसला है ।इसके लागू रहने से समाज के विकास के साथ--साथ और भी कई अच्छे रंग देखने को मिलते ।सरकार को चाहिए की वह बेहतर तरीके से होमवर्क करके सुप्रीमकोर्ट जाए ।
अब हम सरकार की दोगली नीति का अलग से ऑपरेशन करना चाहते हैं ।आज हाईकोर्ट का शराबबंदी को लेकर फैसला आया है ।लेकिन सरकार शराबबन्दी के बाद हम तुम्हें नहीं दूसरों को शराब और बियर पिलाएंगे की तर्ज पर काम कर रही है ।बिहार में शराब और बियर के निर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है ।
बिहार में शराबबंदी लागू करने के बाद पूरे देश में शराबबंदी लागू करने का अभियान चला रहे मुख्यमंत्री साहब ने राज्य में बनने वाली विदेशी शराब और बीयर के निर्यात और इनपर लगने वाली बॉटलिंग फीस को पूरी तरह शुल्क मुक्त कर दिया है ।ये फैसला मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बीते मंगलवार शाम को हुई बैठक में लिया गया है । इस फैसले का मकसद बिहार में विदेशी शराब और बीयर के व्यापार में संलग्न उद्योगों और प्रतिष्ठानों को प्रोत्साहन देना है ताकि वो ज्यादा से ज्यादा मुनाफा के लिए ज्यादा शराब उत्पादन और निर्यात करें। हैरानी की बात ये है कि मुख्यमंत्री एक ओर शराब उत्पादन को बढ़ावा देने का नीतिगत फ़ैसला ले रहे हैं, तो दूसरी ओर देश भर में घूम-घूम कर शराबबंदी का प्रचार कर रहे हैं । खुद को शराबबंदी के मसीहा के रूप में पेश करते हैं और एक बार भी वे ये नहीं बताते कि कैसे उनकी नीतियों ने 2005 में बिहार में होने वाली शराब की औसत सालाना खपत 12 लाख लीटर से लेकर 2015 तक 90 लाख लीटर तक पहुंचा दिया । बिहार में शराबबंदी उनका एकमात्र एजेंडा है ।शराबबंदी को लेकर कठोर कानून उन्होंने लागू किया है ।पूरी प्रशासनिक मशीनरी-पुलिस विभाग को अपराधियों को पकड़ने के बजाय शराब और शराब की बोतलें पकड़ने के काम में लगा रखा है । बिहार के विकास को भगवान भरोसे छोड़कर वे शराबबंदी की चिंता में डूबे रहते हैं ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार से बीजेपी शासित राज्यों में शराबबंदी लागू करने की अपील करते फिर रहे हैं । सवाल ये है कि जब वो खुद शराब उत्पादन को बढ़ावा देने के कदम उठा रहे हैं, तो दूसरे राज्यों में शराब निर्यात कर वहां के लोगों को शराब पीने के लिए प्रोत्साहित क्यों कर रहे हैं ?जाहिर तौर पर नीतीश कुमार देश भर में शराबबंदी लागू करने का महज दिखावा कर रहे हैं?
आखिर में हम यह जरूर कहेंगे की शराब किसी भी सूरत में अच्छी चीज नहीं है ।हाईकोर्ट ने बहुत सोच--समझकर शराबबंदी पर से प्रतिबन्ध हटाया है ।सरकार को पूरी ईमानदारी से शराबबंदी कानून और व्यापार में सुधार करने होंगे ।अगर सरकार की सही मंसा होगी तभी किसी दिन बिहार शराबमुक्त प्रांत हो सकेगा ।दीगर बात तो यह है की पूर्ण शराबबंदी के बाद भी ऊँची कीमत पर शराब बिहार में आज भी हर जगह उपलब्ध है ।